
सवाल उठते हैं — कौन ज़िम्मेदार?:क्या स्कूल भवन की स्थिति पर समय-समय पर निरीक्षण किया गया था? क्या शिक्षा विभाग और लोक निर्माण विभाग (PWD) ने समय रहते मरम्मत या नवीनीकरण की योजना बनाई थी? क्या बारिश और मौसम की स्थिति को देखते हुए किसी तरह की चेतावनी या सुरक्षा व्यवस्था की गई थी?
आज जिन चार परिवारों ने अपने नन्हें बच्चों को खो दिया, उनका दुख शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता। एक ओर भारत शिक्षा में सुधार और डिजिटल स्कूलों की बात करता है, और दूसरी ओर गांवों में ढहते हुए स्कूल भवन बच्चों की जान ले रहे हैं। यह घटना एक चेतावनी है कि अगर अब भी ज़िम्मेदार अधिकारी और विभाग नहीं जागे, तो ऐसे हादसे दोहराए जाते रहेंगे।
इस दर्दनाक हादसे के बाद अब समय केवल शोक व्यक्त करने का नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई का है। सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह इस मामले को गंभीरता से लेते हुए तुरंत प्रभावी कदम उठाए। सबसे पहले, इस हादसे की उच्चस्तरीय जांच करवाई जानी चाहिए ताकि सच सामने आ सके और यह पता चल सके कि आखिर इस लापरवाही के पीछे कौन ज़िम्मेदार है। जिन अधिकारियों की लापरवाही से मासूमों की जान गई, उन पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई ऐसी चूक न हो।
साथ ही, जिन परिवारों ने अपने बच्चों को खोया है, उन्हें केवल सांत्वना नहीं बल्कि उचित मुआवज़ा और मानसिक सहयोग मिलना चाहिए ताकि वे इस असीम पीड़ा से उबर सकें। यह सरकार की नैतिक और मानवीय ज़िम्मेदारी बनती है।
सबसे जरूरी बात, प्रदेश में ऐसे सभी जर्जर स्कूल भवनों की तुरंत पहचान कर एक सूची तैयार की जाए और उनका पुनर्निर्माण कार्य प्राथमिकता पर शुरू किया जाए। यह कदम न केवल भविष्य में होने वाली त्रासदियों को रोक सकता है, बल्कि देश के बच्चों को एक सुरक्षित शैक्षणिक वातावरण भी दे सकता है।
अब वक्त है कि शब्दों से आगे बढ़कर काम किया जाए, क्योंकि मासूम जानों की कीमत किसी भी बहाने या इंतजार से कहीं अधिक है। मनोहरथाना की यह घटना केवल एक समाचार नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। समय रहते अगर स्कूलों की स्थिति पर ध्यान नहीं दिया गया, तो भविष्य में और भी मासूम ज़िंदगी ऐसे हादसों की भेंट चढ़ सकती हैं। अब समय है — “केवल दुख जताने का नहीं, सिस्टम को जवाबदेह बनाने का।”