
राजस्थान की वीरभूमि झुंझुनू
के रामपुरा बेरी गांव ने 20 मई 1918 को एक ऐसे
सपूत को जन्म दिया,
जिसकी रगों में बचपन से ही राष्ट्रभक्ति,
साहस और बलिदान का
लहू दौड़ रहा था। वह कोई साधारण
बालक नहीं था—वह एक ऐसा
भविष्यवक्ता योद्धा था, जिसकी निगाहें भारत मां की रक्षा के
लिए संकल्पित थीं। यह कदम धीरे-धीरे इतिहास के पन्नों में
अमर गाथा बन गया, जब
उनका नाम भारत के सबसे साहसी
सैनिकों में शामिल हुआ—एक ऐसा नाम
जो आने वाली पीढ़ियों को कर्तव्य और
शौर्य का पाठ पढ़ाता
रहेगा। 18 जुलाई 1948 को जम्मू-कश्मीर के टीथवाल
सेक्टर में एक रणनीतिक पहाड़ी पर कब्जा करना भारतीय सेना के लिए आवश्यक था। पाकिस्तान
की सेना और कबायली घुसपैठियों ने इस क्षेत्र को अपने कब्जे में ले रखा था। मेजर पीरू
सिंह ने अपने बटालियन का नेतृत्व करते हुए मोर्चा संभाला। पाकिस्तानी सेना की मीडियम मशीनगन पोस्ट
को तबाह करने के लिए उन्होंने सीधा हमला बोला। भयंकर गोलीबारी और भारी नुकसान के बावजूद
उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। जब उनके साथी पीछे हटने लगे, तब भी उन्होंने डटे रहकर अकेले
दुश्मन का डटकर सामना किया और मोर्चे पर अडिग बने रहे। इस लड़ाई में, एक ग्रेनेड उनके चेहरे
पर फटा, जिससे उनकी आंखों से खून बहने लगा। लेकिन उन्होंने न तो पीछे हटना स्वीकारा
और न ही मौत से डरे। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी
और दुश्मन की दूसरी चौकी पर वीरता से हमला बोल दिया। अंततः एक गोली लगने से वह रणभूमि
में शहीद हो गए, लेकिन उनकी अदम्य साहस और संघर्ष के चलते भारतीय सेना ने उस रणनीतिक
पहाड़ी पर विजय प्राप्त की। उनकी अतुलनीय वीरता के लिए, भारत सरकार
ने उन्हें मरणोपरांत “परमवीर चक्र”, जो कि भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान
है, से सम्मानित किया। उनका नाम आज भी हर सैनिक के दिल में प्रेरणा की लौ बनकर जलता
है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी
मेजर पीरू सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ट्वीट किया:"1948 के युद्ध में अद्वितीय साहस
और शौर्य का प्रदर्शन करते हुए राष्ट्र की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले वीर
पीरू सिंह जी ने अपने बलिदान से यह सिद्ध किया कि एक सच्चे योद्धा के लिए देशभक्ति
और त्याग से बढ़कर कुछ भी नहीं होता। उन्होंने अपनी बटालियन का नेतृत्व करते हुए जिस
वीरता का परिचय दिया, वह आज भी हर सैनिक के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनके बलिदान दिवस
पर मैं उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करता हूँ।"मेजर पीरू सिंह शेखावत न सिर्फ एक योद्धा
थे, बल्कि भारत की मिट्टी के सच्चे सपूत भी थे। उनके बलिदान और वीरता की गाथा आज भी
युवाओं को राष्ट्रसेवा की प्रेरणा देती है। उनका जीवन एक जीवंत पाठ है -
"राष्ट्र पहले, प्राण बाद में।"