सपनों की उड़ान: रमेश बंसल को मिला 'वेद शकुंतला मेमोरियल अवॉर्ड 2025', मॉडलिंग और गायकी से रचा इतिहास

 


सच्ची लगन, अटूट मेहनत और आत्मविश्वास जब साथ मिल जाएं, तो सफलता को भी सलाम करना पड़ता है। ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी है रमेश बंसल की, जिन्होंने अपनी प्रतिभा के दम पर मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में एक अलग पहचान बनाई है। दमोह जिले के ग्राम रसीलपुर से ताल्लुक रखने वाले रमेश बंसल (राजेश) ने बहुत ही कम समय में मॉडलिंग और सिंगिंग की दुनिया में वो मुकाम हासिल किया, जो लाखों लोगों का सपना होता है।

सम्मान का गौरव – वेद शकुंतला मेमोरियल अवॉर्ड 2025
26 अप्रैल 2025 को आयोजित हुए शी कनेक्ट और ही कनेक्ट मीट एवं वेद शकुंतला मेमोरियल अवॉर्ड समारोह में रमेश बंसल को उनके उत्कृष्ट कला और संघर्षशील व्यक्तित्व के लिए सम्मानित किया गया। इस खास अवसर पर देशभर से कई राज्यों से पधारे दिव्यांग प्रतिभागियों को भी सम्मानित किया गया, जिससे मंच पर संवेदनशीलता और आत्मबल का अद्भुत संगम देखने को मिला।

समारोह की मुख्य आयोजक अंजू हांडा जी द्वारा रमेश को स्मृति चिन्ह और कैश प्राइज प्रदान किया गया। समारोह में मौजूद नामचीन हस्तियों के बीच रमेश की गायकी को खूब सराहा गया, जिससे उनका आत्मविश्वास और बढ़ा।
संघर्ष से सफलता तक का सफर
रमेश न सिर्फ एक राष्ट्रीय दिव्यांग मॉडल हैं, बल्कि एक प्रोफेशनल सिंगर भी हैं। उन्होंने अपने करियर में कई सम्मान अपने नाम किए हैं:

Mr. 1st Runner Up 2019

Mr. 2nd Runner Up 2023

Mr. 1st Runner Up 2024

ये केवल खिताब नहीं, बल्कि उनके संघर्ष, समर्पण और काबिलियत का प्रमाण हैं। रमेश ने न केवल अपनी प्रतिभा को साबित किया, बल्कि समाज को यह संदेश भी दिया कि कोई भी चुनौती इतनी बड़ी नहीं होती, जिसे आत्मबल और जुनून से पार न किया जा सके।

रमेश का सपना है कि वह अपनी गायकी और मॉडलिंग के माध्यम से बुंदेलखंड सहित पूरे भारत का नाम रोशन करें और उन युवाओं को प्रेरित करें, जो किसी भी कारणवश अपने सपनों से समझौता कर लेते हैं।
रमेश बंसल आज लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुके हैं। उनकी कहानी बताती है कि अगर हौसले बुलंद हों और राह में अंधेरे हों, तब भी एक सितारा चमक सकता है।
सलाम है ऐसे जज़्बे को, जो मुश्किलों को भी मंच बना देता है।
रमेश बंसल की कहानी सिर्फ एक अवॉर्ड जीतने की नहीं, बल्कि हौसले की उड़ान, जज़्बे की पहचान और सपनों को सच में बदलने की मिसाल है। चुनौतियाँ चाहे जितनी भी हों, अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं।
वेद शकुंतला मेमोरियल अवॉर्ड 2025 से सम्मानित होकर रमेश ने यह साबित कर दिया कि हुनर किसी भी परिस्थिति का मोहताज नहीं होता। उनकी मेहनत, लगन और आत्मविश्वास आज लाखों युवाओं और दिव्यांग साथियों के लिए एक प्रेरणा बन चुका है।
रमेश का सफर एक संदेश है—अगर आपके भीतर जुनून है, तो आपके सपनों की कोई सीमा नहीं।
वे न सिर्फ बुंदेलखंड बल्कि पूरे भारत का नाम रोशन करने की दिशा में बढ़ते कदम हैं।


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