गुजरात में शेरों की दहाड़ और भी गूंजी, ‘प्रोजेक्ट लॉयन’ से बढ़ी संख्या और संरक्षण सुनिश्चित

 

गांधीनगर – भारत के गौरव एशियाई शेरों की दहाड़ अब और भी बुलंद हो गई है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के मार्गदर्शन में संचालित ‘प्रोजेक्ट लॉयन’ के तहत गुजरात में शेरों को एक अनुकूल और सुरक्षित वातावरण प्राप्त हो रहा है, जिससे न केवल उनकी आबादी में वृद्धि हुई है, बल्कि उनके संरक्षण के प्रयास भी और अधिक सुदृढ़ हुए हैं।
गुजरात, जो एशियाई शेरों का एकमात्र प्राकृतिक आवास है, वहां अब इन शेरों की संख्या बढ़कर 891 हो गई है। वर्ष 2020 में इनकी संख्या 674 थी। यानी बीते पांच वर्षों में 217 शेरों की वृद्धि दर्ज की गई है, जो एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।
‘प्रोजेक्ट लॉयन’ के अंतर्गत शेरों के स्वास्थ्य प्रबंधन, चिकित्सा सहायता, और उनके आवास क्षेत्र के विस्तार जैसे महत्वपूर्ण उपायों को गति मिली है। अब ये शेर गुजरात के 11 जिलों में पाए जा रहे हैं, जो उनके संरक्षण और संवर्धन के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
यह उपलब्धि केंद्र और राज्य सरकार के सन्निष्ठ प्रयासों, वन विभाग की लगन और स्थानिक समुदायों के सहयोग से संभव हुई है। शेरों की इस शानदार वापसी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि सही दिशा में किए गए प्रयास हमेशा सकारात्मक परिणाम लाते हैं।
एशियाई शेरों की यह उपलब्धि न सिर्फ गुजरात बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व का विषय है। वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में यह एक प्रेरणादायक उदाहरण बन चुका है।
'प्रोजेक्ट लॉयन' ने न केवल वन विभाग की कार्यशैली को सुदृढ़ किया है, बल्कि स्थानिक लोगों में भी शेरों के प्रति संवेदनशीलता और गर्व का भाव जगाया है। गांवों में जागरूकता अभियान, आधुनिक ट्रैकिंग सिस्टम, हाईटेक रेस्क्यू टीमें और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं अब शेरों के संरक्षण की रीढ़ बन चुकी हैं।
यह उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत ने विश्व मंच पर भी वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक सशक्त उदाहरण प्रस्तुत किया है। 'प्रोजेक्ट लॉयन' उसी दिशा में एक निर्णायक कदम है, जिसने एशियाई शेरों को एक नई आशा और जीवन दिया है।
 अब जरूरत है इस गति को बनाए रखने की। वन्यजीव संरक्षण सिर्फ सरकार या वन विभाग की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है। यदि हम मिलकर इस प्रयास को आगे बढ़ाएं, तो आने वाली पीढ़ियां भी जंगलों में शेरों की दहाड़ सुन सकेंगी और भारत की जैव विविधता गर्व से सिर ऊंचा करेगी।
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