भारत-साइप्रस व्यापार सम्मेलन में क्या हुआ बाइलेट्रल समझौते पर हस्ताक्षर? कौन-कौन से क्षेत्र बन सकते हैं निवेश के केंद्र

 

 प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडुलाइड्स के साथ एक अहम बैठक में भाग लिया, जिसका उद्देश्य भारत और साइप्रस के बीच व्यापारिक संबंधों को और सुदृढ़ करना था। इस विशेष बैठक में दोनों देशों के शीर्ष उद्योगपतियों और CEOs ने भी भाग लिया।

बैठक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत और साइप्रस के बीच नवाचार, ऊर्जा, प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की बीते दशक में हुई प्रगति, सुधारों और निवेश-अनुकूल नीतियों पर भी विस्तार से चर्चा की।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा: "भारत ने बीते 10 वर्षों में व्यापक आर्थिक सुधार किए हैं। हमने केवल डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया है, बल्कि स्टार्टअप, मेक इन इंडिया, ग्रीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में भी वैश्विक निवेशकों को आमंत्रित किया है।"

राष्ट्रपति क्रिस्टोडुलाइड्स ने भी भारत के साथ रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करने की बात कही। उन्होंने कहा कि साइप्रस भारतीय कंपनियों के लिए यूरोप का प्रवेशद्वार बन सकता है।

मुख्य बिंदु: भारत-साइप्रस के बीच व्यापार और निवेश बढ़ाने की रणनीति पर जोर।

                   ऊर्जा, तकनीक, नवाचार स्टार्टअप क्षेत्र में सहयोग की संभावनाएं।

                   भारत के आर्थिक सुधारों वैश्विक नेतृत्व की सराहना।

इस उच्चस्तरीय बैठक को दोनों देशों के व्यापारिक समुदायों ने एक ऐतिहासिक अवसर बताया है, जो आने वाले वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकता है।

क्या हुआ बाइलेटरल समझौते (Bilateral  Agreements) पर  हस्ताक्षर?

सूत्रों के अनुसार, बैठक में फिलहाल किसी औपचारिक द्विपक्षीय समझौते (MoU) पर हस्ताक्षर नहीं हुए हैं, लेकिन दोनों देशों ने आगामी महीनों में निवेश सहयोग, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और ऊर्जा सुरक्षा से संबंधित समझौतों को अंतिम रूप देने पर सहमति जताई है। चर्चा के बाद एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया, जिसमें द्विपक्षीय सहयोग को नई दिशा देने का संकल्प दोहराया गया।

साइप्रस में भारतीय निवेश के प्रमुख क्षेत्र कौन से हैं?

प्रधानमंत्री मोदी ने इस दौरान जिन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी, वे इस प्रकार हैं:

ऊर्जा क्षेत्र: साइप्रस प्राकृतिक गैस और रिन्युएबल एनर्जी के क्षेत्र में अग्रणी है। भारत की कई कंपनियां इसमें भागीदारी की इच्छुक हैं।

फिनटेक और बैंकिंग: साइप्रस यूरोप का एक प्रमुख फाइनेंशियल हब बनता जा रहा है, जो भारतीय फिनटेक स्टार्टअप्स के लिए आकर्षण का केंद्र है।

इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और नवाचार:भारत की आईटी कंपनियां साइप्रस के जरिए यूरोप में अपना विस्तार कर सकती हैं।

शिक्षा और हेल्थटेक: उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग की संभावनाएं मौजूद हैं।

रियल एस्टेट और पर्यटन: भारतीय निवेशक साइप्रस में रियल एस्टेट हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में रुचि दिखा रहे हैं।

इस बैठक को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। यह केवल भारत-साइप्रस संबंधों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि यूरोपीय यूनियन के साथ भारत के सहयोग को भी मजबूती देगी। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बैठक के जरिए एक मजबूत संदेश दिया है कि भारत अब वैश्विक व्यापार में नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए तैयार है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार की उच्चस्तरीय बैठकों से भारत की "एक्ट ईस्ट" और "लिंक वेस्ट" नीति को नया आयाम मिलेगा। हालांकि इस बैठक में कोई औपचारिक समझौता नहीं हुआ, लेकिन व्यापारिक दृष्टिकोण से यह एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। आने वाले महीनों में दोनों देशों के बीच सहयोग के कई नए रास्ते खुलने की उम्मीद है।

 

 

 

 

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