काठमांडू,
नेपाल की राजधानी, जो
अपनी समृद्ध संस्कृति, मंदिरों और ऐतिहासिक धरोहरों
के लिए जानी जाती है, सितंबर 2025 में एक अभूतपूर्व राजनीतिक
संकट और युवा आंदोलन
का केंद्र बन गई। 1300 मीटर
की ऊँचाई पर बसा यह
शहर पशुपतिनाथ मंदिर, बौद्धनाथ स्तूप और स्वयंभूनाथ जैसे
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों के लिए प्रसिद्ध
है, लेकिन इस महीने यहां
इतिहास राजनीति की आग में
झुलसता दिखा। 8 सितंबर 2025 को
नेपाल सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स—फेसबुक,
एक्स, यूट्यूब और अन्य 26 सोशल
मीडिया—पर
प्रतिबंध लगाए जाने के बाद युवाओं
का गुस्सा सड़कों पर फूट पड़ा।
सरकार ने इस फैसले
को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी
मंत्रालय के नए नियमों
के तहत उचित ठहराया, लेकिन जनता और आलोचकों ने
इसे भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद
के खिलाफ चल रही मुहिम
को दबाने का प्रयास माना।काठमांडू
की सड़कों पर हजारों की
संख्या में युवा और छात्र उतर
आए। प्रदर्शनकारियों ने न केवल
सोशल मीडिया प्रतिबंध बल्कि सरकारी भ्रष्टाचार, जवाबदेही की कमी और
बेरोज़गारी जैसे मुद्दों पर भी आवाज़
उठाई। आंदोलन को " जेन्जी विरोध प्रदर्शन" का नाम दिया
गया क्योंकि इसमें मुख्य भूमिका युवा और छात्रों की
थी। स्थिति
तब बिगड़ी जब प्रदर्शनकारियों ने संसद
भवन की ओर कूच
किया और घुसने की
कोशिश की। सुरक्षा बलों ने आंसू गैस,
पानी की बौछार, रबर
की गोलियां और यहां तक
कि गोलियों का भी इस्तेमाल
किया। इस दौरान कम
से कम 22 लोगों की मौत हो
गई और 400 से अधिक लोग
घायल हुए। हालात काबू से बाहर जाते
देख कर्फ़्यू लागू किया गया और प्रशासन ने
देखते ही गोली मारने
का आदेश जारी कर दिया। 9सितंबर को
आंदोलन और अधिक उग्र
हो गया। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति राम
चन्द्र पौडेल के आवास और
संसद भवन को घेर लिया।
भीड़ ने संसद भवन
में आग लगा दी,
जिससे पूरे देश में सनसनी फैल गई। भारी दबाव के चलते प्रधानमंत्री
के. पी. शर्मा ओली और कई मंत्रियों
ने इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रपति
पौडेल ने भी पद
छोड़ दिया। इस घटनाक्रम ने
नेपाल की पहले से
अस्थिर राजनीति को और गहरा
संकट में धकेल दिया। उल्लेखनीय है कि 2008 में
राजशाही की समाप्ति के
बाद से नेपाल में
17 वर्षों में 14 प्रधानमंत्री बदल चुके हैं। यही कारण था कि इस
आंदोलन के बीच राजशाही
की वापसी की मांग भी
उठने लगी। 10 और 11 सितंबर
को भी काठमांडू तनाव
से घिरा रहा। हिंसा और प्रदर्शनों के
चलते त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उड़ानें रद्द
कर दी गईं। आधिकारिक
आंकड़ों के अनुसार इन
दो दिनों में 19 लोगों की मौत हुई
और 347 से अधिक घायल
हुए, जबकि अनौपचारिक अनुमान 422 से ज्यादा घायलों
का संकेत देते हैं। सरकार ने अंततः सोशल
मीडिया से प्रतिबंध हटा
लिया, लेकिन तब तक स्थिति
सामान्य होने से काफी दूर
थी। जेन्जी
आंदोलन के पीछे कई
गहरी वजहें थीं। पहली वजह सोशल मीडिया पर प्रतिबंध था,
जिसे युवाओं ने अपनी अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता पर हमला माना।
दूसरी वजह भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद
के खिलाफ लंबे समय से जमा गुस्सा
था। तीसरा कारण आर्थिक चुनौतियां और बेरोज़गारी थी,
जिसने युवाओं को निराश कर
दिया। चौथा बड़ा कारक राजनीतिक अस्थिरता रही, क्योंकि बार-बार सरकारें बदलने से जनता का
भरोसा व्यवस्था पर से उठ
चुका था। इसके अलावा पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश और श्रीलंका में
हाल के युवा आंदोलनों
ने नेपाली युवाओं को प्रेरित किया।
यही नहीं, वन पीस जैसे
वैश्विक पॉप संस्कृति प्रतीकों का इस्तेमाल इस
आंदोलन को एक अंतरराष्ट्रीय
रंग देता दिखाई दिया इस आंदोलन ने कई सवाल
खड़े किए। क्या नेपाल अब एक नए
राजनीतिक दौर की ओर बढ़ेगा,
जहां युवा नेतृत्व सत्ता की बागडोर संभालेगा,
या फिर पारंपरिक दल और पुरानी
व्यवस्था फिर से नियंत्रण हासिल
कर लेंगे? क्या यह आंदोलन स्थायी
बदलाव लाएगा या अस्थिरता का
चक्र जारी रहेगा? 11 सितंबर 2025 तक
एक बात साफ हो चुकी थी
कि जेन्जी आंदोलन ने नेपाल की
राजनीति और समाज को
हिला कर रख दिया
है। सोशल मीडिया पर बैन केवल
चिंगारी थी, असली आग भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी
और जवाबदेही की कमी से
उपजी थी। काठमांडू, जो सदियों से
शांति और संस्कृति का
प्रतीक रहा है, अब एक नए
राजनीतिक और सामाजिक युग
की तलाश में है। 8 से 11 सितंबर 2025 तक भड़का जेन्जी
आंदोलन केवल विरोध या गुस्से की
कहानी नहीं है, बल्कि यह नेपाल के
युवाओं की ताक़त और
उनके भविष्य के सपनों का
प्रतीक बन चुका है।
इस आंदोलन ने यह साबित
कर दिया कि सोशल मीडिया
बैन से पैदा हुई
चिंगारी दरअसल भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और जवाबदेही की
कमी जैसी गहरी समस्याओं का विस्फोट थी।लेकिन
इस अराजकता के बीच सबसे
अहम संकेत यही है कि अब
नेपाल की संसद और
सत्ता का भविष्य युवाओं
के हाथों में होगा। काठमांडू की गलियों में
यह आवाज़ बार-बार सुनाई दी कि अब
बदलाव की बागडोर जेन्जी
पीढ़ी थामेगी। 35 वर्षीय काठमांडू
के मेयर बालेन्द्र शाह (बालेन), जो युवाओं के
बीच बेहद लोकप्रिय हैं, इस आंदोलन के
बाद नए नेतृत्व और
नई राजनीति के प्रतीक बनकर
उभरे हैं। उनकी छवि साफ-सुथरी, भ्रष्टाचार-विरोधी और पारदर्शिता पर
आधारित है। यही वजह है कि जेन्जी
ग्रुप में वे सबसे अधिक
पसंद किए जाने वाले चेहरों में शामिल हैं। काठमांडू
के युवाओं ने यह दिखा
दिया कि वे केवल
नारे लगाने वाली भीड़ नहीं हैं, बल्कि वे अपने देश
की दिशा बदलने की क्षमता रखते
हैं। उन्होंने यह साबित कर
दिया कि "युवा क्या चीज़ है" – और यह संदेश
अब केवल नेपाल ही नहीं, पूरी
दुनिया ने देख लिया।यह
आंदोलन एक पुकार है
– "हमें भी मौका दो,
हमें भी काम करने
दो।"अगर इस ऊर्जा और
जुनून को सही दिशा
दी गई तो काठमांडू
और पूरा नेपाल आने वाले वर्षों में एक नई राजनीतिक
और सामाजिक सुबह देख सकता है। आज दुनिया ने
देख लिया कि काठमांडू के
युवाओं ने जो किया,
वह असंभव नहीं था। उन्होंने यह साबित किया
कि युवा केवल देश का भविष्य नहीं
हैं, बल्कि देश का वर्तमान भी
हैं। यह आग केवल
विनाश की नहीं थी,
बल्कि एक नए नेपाल
की नींव रखने वाली चिनगारी भी थी।