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कोर्ट ने अपने आदेश
में कहा है कि: "प्रथम
दृष्टया इस बात के
पुख्ता सबूत हैं कि दिव्यकीर्ति ने
तुच्छ प्रसिद्धि पाने के लिए दुर्भावनापूर्ण
इरादे से न्यायपालिका के
खिलाफ अपमानजनक और व्यंग्यात्मक भाषा
का इस्तेमाल किया है।" यह टिप्पणी सीधे
तौर पर यह संकेत
देती है कि अदालत
दिव्यकीर्ति की मंशा और
उनके शब्दों की गंभीरता को
हल्के में नहीं ले रही है।
विकास दिव्यकीर्ति ने अपने यूट्यूब
चैनल पर एक वीडियो
डाला था जिसमें उन्होंने
IAS और जज के बीच
तुलना करते हुए न्यायपालिका की प्रक्रिया और
कार्यशैली को लेकर कुछ
आलोचनात्मक टिप्पणियां की थीं। उनका
यह अंदाज़ कुछ लोगों को हास्यपूर्ण लगा,
लेकिन कई दर्शकों और
कानूनी विशेषज्ञों ने इसे न्यायपालिका
का अपमान करार दिया।
इस मुद्दे पर
सोशल मीडिया दो हिस्सों में
बंटा हुआ नजर आ रहा है।
एक वर्ग दिव्यकीर्ति के पक्ष में
खड़ा है और उनका
बचाव करते हुए इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बता
रहा है, जबकि दूसरा वर्ग इसे न्यायपालिका की गरिमा को
ठेस पहुंचाने वाला कृत्य मान रहा है।
अगर अदालत इस मामले को
गंभीर मानती है और वीडियो
को न्यायपालिका के अपमान का
प्रतीक मानती है, तो विकास दिव्यकीर्ति
को कानूनी सजा, माफीनामा या भविष्य में
इस तरह की सामग्री से
दूरी बनानी पड़ सकती है।
अब तक विकास
दिव्यकीर्ति की ओर से
इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक
प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। सभी
की नजरें 22 जुलाई की सुनवाई पर
टिकी हैं, जहां वह कोर्ट के
सामने अपनी बात रखेंगे।
शिक्षा के क्षेत्र में
एक बड़ा नाम बन चुके विकास
दिव्यकीर्ति अब कानूनी चुनौतियों
का सामना कर रहे हैं।
यह मामला ना केवल उनके
व्यक्तिगत ब्रांड के लिए महत्वपूर्ण
है, बल्कि यह भी दिखाता
है कि सोशल मीडिया
पर कही गई हर बात
कितना बड़ा असर डाल सकती है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प
होगा कि अदालत का
रुख क्या रहता है और दिव्यकीर्ति
अपने बचाव में क्या तर्क पेश करते हैं।